सिंधु जल समझौता क्या है जानते है इस लेख में
मुख्य बिंदु–
सिंधु जल संधि करार के तहत व्यास, सतलज और रावी का पानी भारत को और सिंधु, चेनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को दिया गया है। भारत और पाकिस्तान ने 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता एक गवाह के रूप में है ।
सिंधु जल समझौते पर भारत और पाकिस्तान में शुरू से विवाद रहा है ।
चर्चा में क्यों??
हालही में भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन के लिए पाकिस्तान को बातचीत का नोटिस भेज दिया है। नोटिस में उसे वार्ता के लिए नब्बे दिन का समय दिया गया है, भारत पिछले पांच सालों से कोशिश करता आ रहा है कि समझौते में संशोधन हो, मगर पाकिस्तान इसे लगातार टालता ही जा रहा है। अब भारत उसकी निरंतर चल रही मनमानी को सहने को तैयार नहीं है, वह नए दौर में स्वाभाविक ही संशोधन चाहता है। दरअसल सिंधु की सहायक नदियों पर किशनगंगा पनबिजली परियोजना और चिनाब पर रातले पनबिजली परियोजना का काम शुरू करने के बाद से ही पाकिस्तान इन्हें संधि के प्रावधानों के खिलाफ बताकर इसके मध्यस्थ विश्व बैंक के पास चला गया था।
पहले उसने मामले के समाधान के लिए निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने की, फिर मध्यस्थता अदालत की मांग की। जबकि इस संधि के त्रिस्तरीय विवाद निपटारा तंत्र में शुरूआती स्तर पर सिंधु जल आयुक्त, दूसरे स्तर पर निष्पक्ष विशेषज्ञ और तीसरे स्तर पर मध्यस्थता अदालत का प्रावधान है। भारत भी निष्पक्ष विशेषज्ञ के लिए समस्या के हल का आकांक्षी रहा है। लेकिन पाकिस्तान की मांग पर विश्व बैंक ने जिस तरह निष्पक्ष विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत दोनों ही मोर्चे पर एक साथ पहल की है, उसे देखते हुए भारत ने पाकिस्तान को नोटिस दिया है। भारत की यह सख्ती उचित है।
पाकिस्तान को भारत कुल पानी का 80.52 फीसदी हिस्सा देता है,और अपनी 6 नदियों के पानी का भी इस्तेमाल नही करता
एक तो इस संधि के तहत पाकिस्तान को भारत कुल पानी का 80.52 फीसदी हिस्सा देता है, जिसके कारण जम्मू-कश्मीर को नुकसान उठाना पड़ता है और कभी वहां की विधानसभा ने इस संधि को रद्द करने का प्रस्ताव भी पारित किया था। इसके बाद 2016 में उरी में हुए आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं वह सकते। उस हमले के बाद सरकार ने एक कार्यबल का भी गठन किया, क्योंकि वह पानी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए संधि में संशोधन कराना चाहता है। लेकिन 2017 से 2022 के बीच सिंधु जल संधि के स्थायी कमिशन की पांच बैठकों में भारत के लगातार अनुरोधों के बावजूद पाकिस्तान ने संधि के नवीनीकरण में कोई रूचि नहीं दिखाई।
यह पाकिस्तान का दोहरापन ही है कि भारत की पनबिजली परियोजनाओं पर तो उसे आपत्ति है, लेकिन पानी के इस्तेमाल के मामले में संधि में वह कोई बदलाव की इच्छा नहीं रखता। जबकि संधि लागू होने के बाद से ही 6 नदियों के पानी का उतना इस्तेमाल भी भारत नहीं करता, जितना करने का उसे अधिकार है। जाहिर है भारत लंबे काल तक पाकिस्तान की मनमानी को सहन नहीं कर सकता तो उसे वार्ता की टेबल पर बैठना ही होगा और भारत के नोटिस का यही संदेश है।
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