ग्रीन हाइड्रोजन क्या है, इसे भविष्य का ईधन क्यों कहाँ जाता है- समसमायिकी लेख
ग्रीन हाइड्रोजन क्या है- सबसे पहले समझते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन – मतलब ऐसा हाइड्रोजन जो रीन्युबलएनर्जी जैसे सोलर पावर या विंड टरबाइन कि मदद से तैयार किया गया हो, जिसका कार्बन उत्सर्जन शून्य हो, क्योंकि कोयले और पेट्रोलियम से भी हाइड्रोजन बनाया जा सकता हैं, परंतु कोयले से बनने वाले हाइड्रोजन को ब्लैक और पेट्रोलियम गैस अथवा मीथेन से बनने वाले हाइड्रोजन को ग्रे हाइड्रोजन कहा जाता हैं। चूंकि इनसे बनने वाले हाइड्रोजन से कार्बन उत्सर्जन होता ही हैं, इसलिए इनका उतना महत्व नहीं रह जाता।
हाइड्रोजन – वैसे तो पूरे ब्रह्मांड में हाइड्रोजन ही हाइड्रोजन हैं परंतु हमारी पृथ्वी पर यह केवल 0.1% ही यानी कि बहुत ही कम मात्र में मिलता हैं परंतु यह यौगिक रूप में संयुक्त दशा में जल, पेड़ पौधे, काष्ठ, अनाज, तेल, वसा, पेट्रालियम, प्रत्येक जैविक पदार्थ में पाया जाता है। कह सकते हैं लगभग सभी में पाया जाता हैं। यह बहुत ही हल्का होता हैं, जिसके कारण से इसे स्टोर करना और इसका परिवहन करना व्ययवासियक रूप से संभव नहीं हो पाया है जिसके कारण इस दिशा में उतना काम नहीं हो पाया जितना होना चाहिए था ।
हाइड्रोजन कैसे बनाते हैं ? इसे बनाया जाता है पानी में इलेट्रिसिटी या करेंट के प्रवाह से, जैसे ही पानी में इलेट्रिसिटी डाली जाती है यह अपने हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पार्टिकल में अलग हो जाता है जिसमें से हाइड्रोजन को अलग कर उच्च दाब वाले कंटेनर में स्टोर कर लिया जाता है इस प्रकिया मेइलेक्ट्रोलिसिसका उपयोग किया जाता है। इसमे और फिर जब यही हाइड्रोजन, हाइड्रोजन फ्यूल सेल में ऑक्सीजन से क्रिया करता हैं तो परिणाम स्वरूप इलेक्ट्रिसिटी और पानी बनती हैं परंतु क्या इतना आसान है। हाइड्रोजन बनाना? यदि है तो फिर अभी तक तो इसे पेट्रोल और डीजल का विकल्प बन जाना था ?हाइड्रोजन फ्यूल के साथ मुख्य समस्या ये है।कि यह बहुत ही उच्च दाब पर ही स्टोर किया जा सकता है, जिसके कारण इसका परिवहन यानी एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बहुत ही महंगा और असुविधाजनक है साथ ही फ्यूल सेल टेक्नॉलजी अभी प्रारम्भिक अवस्था में है इसलिए यह अभी बहुत महंगी हैं।
इस समस्या से निजात पाने के लिए कई देश ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार कर रहे हैं। जापान ने 2017 में ही बुनियादी हाइड्रोजन रणनीति तैयार की, जिसके तहत 2030 तक एक अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना कर हाइड्रोजन परिवहन कि समस्या को दूर करना है। वहीं दक्षिण कोरिया अपनी ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था विकास और हाइड्रोजन का सुरक्षित प्रबंधन अधिनियम, 2020 के तहत हाइड्रोजन परियोजनाओं तथा हाइड्रोजन फ्यूल सेल उत्पादन इकाइयों का संचालन कर रहा है।
भारती की सरकार भी आयातित जैव ईंधन पर अपनी निर्भरता को अब खत्म करना चाहती हैं। हाइड्रोजन की ताकत को सरकार ने पहचानते हुए इसके शोध और विकास के लिए 19,744 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना को मंजूरी राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के तहत दी है। इसके तहत 50 लाख टन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता का विकास करने का लक्ष्य 2030 तक रखा गया हैं और साथ ही साथ 2030 तक इलेक्ट्रोलिसिस निर्माण में देश को सक्षम बनाना ।
यह ईंधन निश्चित ही भविष्य को बदलने की क्षमता रखता है, क्योंकि यदि यह शोध और प्रयोग।सफल होता है तो निश्चित ही भारत की ईंधन के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म होगी जिससे अर्थ व्ययवस्था के विकास को एक नई रफ्तार मिलेगी और कार्बन उत्सर्जन भी काम होगा, क्योंकि हाइड्रोजन के उपयोग से कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है, केवल पानी और ऊष्मा का ही उत्सर्जन होता है। फिर भी अभी हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़ी प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में काफी अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी और वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह सरकार हाइड्रोजनऊर्जाको लेकर जिस सकरात्मकता और तेज गति से आगे बढ़ रही है, वह दिन दूर नहीं जब इंडिया ग्रीन हाइड्रोजन के निर्माण और उसके व्यावसायिक संधारण और सप्लाई में, विश्व में अग्रणी होगा।।
मुख्य चुनौतियाँ
1. उत्पादन, संधारण और परिवहन को सुगम बनाना।
2. ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत को 80-85 रुपए तक ले जाना ।